Motivational Stories

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संगठन 

A Short Story on Unity

बात सालों पुरानी है…. मथुरा के पास एक गाँव था| उस गाँव में एक लकडहारा रहता था| लकडहारा रूज सुबह सुबह जंगल में लकड़ियाँ लेने जाता और शाम को गाँव में आकर बेच देता| 

एक बार जब लकडहारा सुबह सुबह जंगल की और गया तो उसे जंगल में एक गड्ढे में जंगली श्वान के बच्चे को गिरा हुआ देखा| 


लकडहारे ने श्वान को गड्ढे से निकला और उसका उपचार करने के लिए अपने साथ अपने घर ले आया| कुछ ही समय में श्वान का बच्चा लकडहारे के परिवार से बहुत अच्छे से घुल-मिल गया|
जब श्वान का बच्चा बड़ा हुआ तो लकडहारे ने सोचा  की “श्वान के लिए जंगल का खुला वातावरण ही अच्छा रहेगा इसलिए अब इसे जंगल में छोड़ देन चाहिए” | 

बस लकडहारे के सोचने भर की देर थी, अगले दिन ही लकडहारा श्वान को जंगल में छोड़ आया| श्वान जल्दी ही जंगल में दुसरे श्वानों के साथ घुलमिल गया और उनका मित्र बन गया|
कुछ दिन बाद ही लकडहारे को पता चला की जंगल में एक बाघ है जो प्रायः श्वानों का शिकार कर उन्हें खा जाता है| 

अब लकडहारे को अपने पाले हुए श्वान की चिंता सताने लगी| लकडहारे ने कुछ सोचविचार कर अपने श्वान को बचने के लिएय बाघ का शिकार करने का निश्चय किया| 

अगले दिन ही लकडहारे ने बाघ को मारने की एक योजना बनाई| उसने जंगल के बिच में एक बड़ा सा गड्ढा खोदा और सभी श्वानों को गड्ढे के पीछे खड़ा कर खुद गड्ढे के आगे खड़ा हो गया|
कुछ ही समय में बाघ श्वानो का शिकार करने श्वानों के रहने वाले इलाके की और आया| बाघ ने श्वानों को डराने के लिए उन्हें घूरकर देखा और एक लम्बी दहाड़ लगाई| 


श्वानों के साथ लकडहारा खड़ा था इसलिए बाघ की दहाड़ सुनकर श्वान डरे नहीं और अपनी जगह पर जैसे के तैसे खड़े रहे| 

तभी बाघ की नज़र लकडहारे पर पड़ी| बाघ लकडहारे को मारने के लिए जैसे ही लकडहारे की औरे झपटा, लकडहारा एक और कूद गया और बाघ सीधे लकडहारे के खोदे गए गड्ढे में जा गिरा|
बस फिर क्या था, मौका देखकर सभी श्वान बाघ पर टूट पड़े और कुछ ही देर में  शेर को मार गिरा दिया| और इस तरह जंगल के श्वान संघठन से शेर जैसे जानवर पर विजय पाने में सफल हुए|




परिश्रम का महत्व 

Story in Hindi Language

बात तब की है जब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थी| पहाड़ बिमारियों को अपनी बेटी की तरह पालता पोसता था| 

बीमारियाँ पहाड़ के इस उपकार के लिए पहाड़ का अहसान मानती और हमेशा पहाड़ के इस अहसान के लिए किसी भी उपकार के लिए इच्छुक रहती| 

लेकिन पहाड़ तो पहाड़ ठहरा, था ही इतना विशाल और अपनी जगह डटा हुआ की उसे कभी बिमारियों के किसी उपकार की ज़रूरत ही नहीं पड़ी|
पहाड़ की तलहटी में ही एक गाँव था| कुछ दिन बीते और गाँव के एक किसान को खेती के लिए अतिरिक्त ज़मीन कि ज़रूरत पड़ी| 

किसान को कहीं ज़मीन दिखाई नहीं दी| अचानक किसान की नज़र हजारों एकड़ जमीन दबाए हुए पहाड़ पर पड़ी| किसान ने सोचा क्यों ना पहाड़ को खोदकर खेती योग्य जमीन को निकाल दिया जाए| ]
बस फिर क्या था, किसान के सोचने भर की देर थी और उसने पहाड़ को खोदकर कई साडी जमीन निकाल ली| 

किसान को पहाड़ खोदता देख और दुसरे किसान भी जमीन के लिए पहाड़ को खोदने चले आए| देखते ही देखते किसानों की संख्या सेकड़ों तक पहुँच गई| किसान फावड़ा लेकर पहाड़ को खोदने में जुटे रहे|

यह देख पहाड़ को अपना अस्तित्व खतरे में नज़र आने लगा| पहाड़ घबराया और अपने बचाव के उपाय खोजने लगा| 

किसान को जब अपने बचाव का कोई उपाय न सुझा तो उसे अपने कोटर में पल रही बिमारियों की याद आई| पहाड़ ने सभी बिमारियों को इकठ्ठा किया और कहा, “मेने कई साल तुम्हारी रक्षा की है और तुम्हें रहने के लिए अपनी कोटर में स्थान दिया है| 

लेकिन अब मेरे किए गए इस उपकार का वक्त आ गया है|” बीमारियाँ पहाड़ के किसी भी काम के लिए पहले ही तैयार थी| किसान ने फावड़े और कुदाल चलाते हुए किसानो की और इशारा किया और कहा, “पुत्रियों! यह देखो मेरे क्षत्रु| 

फावड़ा और कुदाल लेकर मेरे अस्तित्व को खतरे में डाले हुए हैं| तुम सब की सब इनपर झपट पदों और मेरा नाश करने वालों का सत्यानाश कर डालो|”



पहाड़ का आदेश मानकर बीमारियाँ आगे बढ़ी और किसानों के शरीर से जाकर लिपट गई| पर किसान तो अपनी धुन में लगे थे| 

जितने तेजी से फावड़े और कुदाल चलाते उतनी ही तेजी से पसीना बाहर निकलता और साड़ी बीमारियाँ धुलकर निचे गिर जाती| 

बिमारियों ने किसानों को बीमार बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किये लेकिन बिमारियों की एक ना चली| एक अच्छा स्थान छोड़कर उन्हें गंदे स्थान पर जाना पड़ा सो अलग|
पहाड़ ने देखा की जिन बिमारियों को उसने सालों से पाला था वह भी उसकी रक्षा न कर सकी तो पहाड़ बहुत क्रोधित हुआ और उसने बिमारियों को श्राप दिया, कि “मेने तुम्हें अपनी पुत्रियों कि तरह पाला पर फिर भी तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकी अब तुम जहाँ हो वहीँ पड़ी रहो|”
तब से बीमारियाँ गन्दगी में ही पड़ी रहती है और महनत करने वाला अनपढ़ आदमी भी स्वस्थ जीवन जीता है| बस यही नियम आज तक चला आ रहा है|
इसीलिए कहा गया है, “हमेशा महनत करते रहना चाहिए| महनती व्यक्ति हमेशा स्वस्थ व् सफल जीवन जीता है|”


पंच रत्न | Hindu Mythology Stories


महर्षि कपिल प्रतिदिन पैदल अपने आश्रम से गंगा स्नान के लिए जाया करते थे| मार्ग में एक छोटा सा गाँव पड़ता था| जहाँ पर कई किसान परिवार रहा करते थे| जिस मार्ग से महर्षि गंगा स्नान के लिए जाया करते थे,  उसी मार्ग में एक विधवा ब्राम्हणी की कुटीया भी पड़ती थी| महर्षि जब भी उस मार्ग से गुजरते, ब्राम्हणी या तो उन्हें चरखा कातते मिलती या फिर धान कुटते| एक दिन विचलित होकर महर्षि ने ब्राम्हणी से इसका कारण पूछ ही लिया| पूछने पर पता चला की ब्राम्हणी के घर में उसके पति के अलावा आजीविका चलने वाला कोई न था| अब पति की म्रत्यु के बाद पुरे परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी उसी पर आ गई थी|
कपिल मुनि को ब्राम्हणी की इस अवस्था पर दया आ गई और उन्होंने ब्राम्हणी के पास जाकर कहा, “भद्रे ! में पास ही के आश्रम का कुलपति कपिल हूँ| मेरे कई शिष्य राज-परिवारों से हैं| अगर तुम चाहो तो में तुम्हारी आजीविका की स्थाई व्यवस्था करवा सकता हूँ, मुझसे तुम्हारी यह असहाय अवस्था देखी नहीं जाती|
ब्राम्हणी ने हाथ जोड़कर महर्षि का आभार व्यक्त किया और कहा, “मुनिवर, आपकी इस दयालुता के लिए में आपकी आभारी हूँ, लेकिन आपने मुझे पहचानने में थोड़ी भूल की है| पंच रत्न | Hindu Mythology Stories
ना तो में असहाय हूँ और ना ही निर्धन| आपके शायद देखा नहीं, मेरे पास पांच ऐसे रत्न हैं जिनसे अगर में चहुँ तो खुद राजा जैसा जीवन यापन कर सकती हूँ| लेकिन मैंने अभी तक  उनकी आवश्यकता अनुभव नहीं किया इसलिए वह पांच रत्न मेरे पास सुरक्षिक रखे हैं| 
कपिल मुनि विधवा ब्राम्हणी की बात सुनकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा, “भद्रे ! अगर आप अनुचित न समझे तो आपके वे पांच बहुमूल्य रत्न मुझे भी दिखाएँ| देखू तो आपके पास कैसे बहुमूल्य रत्न है ?
ब्राम्हणी ने आसन बीचा दिया और कहा, “मुनिवर आप थोड़ी देर बैठें, में अभी आपको मेरे रत्न दिखाती हूँ| इतना कहकर ब्राम्हणी फिर से चरखा कातने लगी| थोड़ी देर में ब्राम्हणी के पांच पुत्र विद्यालय से लौटकर आए| उन्होंने आकर महर्षि और माँ के पैर छुए और कहा . “माँ ! हमने आज भी किसी से झूंठ नहीं बोला, किसी को कटु वचन नहीं कहा, गुरुदेव ने जो सिखाया और बताया उसे परिश्रम पूर्वक पूरा किया है|
महर्षि कपिल को और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी| उन्होंने ब्राम्हणी को प्रणाम कर कहा, “भद्रे ! वाकई में तुम्हारे पास अति बहुमूल्य रत्न है, ऐसे अनुशाषित बच्चे जिस घर में हो, जिस देश में हो उसे चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है|


ननंद | Emotional Story in Hindi | Hindi Kahaniyan



शिखा !  परिवार की लाडली बिटिया या फिर यूँ कहें की परिवार की आन, बान और जान| जब घर में होती तो ऐसा लगता मानों घर में आसमान टूट पड़ा हो| घर में इधर उधर धमा-चोकड़ी करना और खूब सारी बातें करना उसके पसंदीदा कामों में से एक था| शिखा के दादाजी शिखा को बहुत प्यार करते थे, लेकिन आजकल उन्हें शिखा की एक चिंता और खाए जा रही थी और वो थी शिखा की शादी की चिंता| बस दादाजी अब हर परिवार में शिखा का ससुराल ढूंढते| लेकिन शिखा को शादी नाम से ही इतनी चिढ थी कि शादी का नाम सुनते ही वह गुस्सा होकर, मुह फुला कर दुसरे कमरे में बैठ जाती|
खैर, थोड़ी देर में उसका गुस्सा खुद-ब-खुद उतर जाता और वो वापस अपनी धमा-चोकड़ी में व्यस्त हो जाती| काफी खोज-बिन के बाद भी शिखा के दादाजी को कोई ऐसा परिवार नज़र नहीं आया जहाँ वे अपनी लाडली बिटिया की शादी कर सके| इसलिए उन्होंने अपने बचपन के दोस्त से इस बारे में राय लेने का निश्चय किया| बस फिर क्या था वे अपने दोस्त रायबहादुर से मिलने बरेली की और निकल पड़े |
अगले दिन जब वह बरेली पहुंचे तो रायबहादुर ने स्टेशन पर ही उनके लिए गाड़ी भेज दी थी| 10 साल बाद अपने बचपन के दोस्त से मिलने के लिए वे भी बड़े उतावले थे| गाडी धीरे-धीरे रायबहादुर के घर की और बढ़ी ! बड़ा सा बंगलो, बंगलों के आगे बगीचा, गाड़ियाँ और  नोकर-चाकर देख दादाजी का मन ख़ुशी से भर गया|
इन 10 सालों में रायबहादुर ने कितनी तरक्क्की कर ली है, नहीं तो 10 साल पहले रायबहादुर के पास था ही क्या| बस यही सब सोचते-सोचते शिखा के दादाजी अपने दोस्त के बंगलो पहुँच ही गए|
गाड़ी की हॉर्न की आवाज के साथ ही रायबहादुर घर के बाहर अपने दोस्त के स्वागत के लिए आ गए थे| अपने दोस्त को गले लगाकर वे दादाजी को अन्दर ले गए| घर अन्दर से भी काफी शानदार था, अपने दोस्त की सम्पन्नता को देख शिखा के दादाजी भी फुले नहीं समाए|


चाय-नाश्ता के बाद रायबहादुर ने उनके खास दोस्त से आने का कोई खास कारण पुछा|  दादाजी ने पोती की शादी के लिए एक अच्छा सा परिवार ढूंढने की का काम सोंपते हुए बिटिया का फोटो रायबहादुर के हाथ में सोंप दिया|
रायबहादुर भी अपने बेटे विक्रम के लिए एक सुयोग्य कन्या की तलाश में थे| तीखे नैन नक्श, चहरे पर तेज और एक बार में ही किसी को पसंद आने वाली शिखा बिटिया को फोटो में देखकर ही उन्होंने शिखा को अपने घर की बहु बनाने का फैसला कर लिया|
रायबहादुर इतना सोच ही रहे थे की इतने में उनका बेटा विक्रम आ गया| विक्रम ने दादाजी के पैर छुए और हाल-चाल पूछने के बाद ऑफिस की और निकल गया| विक्रम के जाने के बाद रायबहादुर ने अपने दोस्त से विक्रम और शिखा के सम्बन्ध के लिए पेशकश की| शिखा के दादाजी को लगा जैसे रायबहादुर ने उनके मुह की बात छिन ली हो|
खेर, प्रसंन्नता से विदा लेकर अपने घर आने का कहकर दादाजी अपने घर की और निकल गए|
विक्रम को शिखा बहुत पसंद थी| लेकिन विक्रम की माँ, विक्रम की शादी अपने से भी बड़े घर में करना चाहती थी लेकिन विक्रम के मनाने पर वह मान गई और तय समय पर विराम और शिखा की शादी हो गई|
ससुराल में शिखा के साँस-ससुर, विक्रम के बड़े भैया-भाभी और शिखा की ही उम्र की एक ननंद थी रागिनी| अपनी साद्की और सबका अच्छे से ख्याल रखने के कारण शिखा ने घर में सबके दिलों में जगह बना ली| लेकिन अपनी तमन कोशिशों के बावजूद अपनी सासू- माँ  का प्यार पाने में असफल रही|वह शिखा के हर काम में कुछ ना कुछ गलती निकाल ही देती थी|
अपनी शादी की रात को ही विक्रम ने शिखा से साफ-साफ कह दिया था,की”घर के किसी भी मामले में में बिलकुल नहीं बोलूँगा| ना तो में किसी बात पर माँ से बहस करूँगा और ना ही तुम्हारा साथ दूंगा| तुम्हें अपनी समझदारी से ही काम लेना होगा|”
लेकिन शिखा की लाख कोशिशों के बावजूद भी सासू-माँ के व्यव्हार में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा था| शिखा की ननद जरुर उसकी माँ से शिखा भाभी के प्रति इस तरह के व्यहवार पर उलझ जाती लेकिन इस से भी केवल बात बढ़ने के अलावा कुछ नहीं होता| इसी तरह करीब एक साल निकल गया| शिखा और विक्रम को जुड़वाँ बेटियाँ हुई| यह समय शिखा के लिए अग्नि परीक्षा का समय था| शिखा का दर्द शिखा के लिए आंसू बन गया था ससुराल में शिखा को सम्हालने वाला कोई नहीं था और विक्रम और उनके पापा ने शिखा को अपने मायके भेजने के लिए पहले ही मना कर दिया था|


एक दिन रागिनी कॉलेज से आई तो उसने सभी को कॉलेज के सालाना कार्यक्रम में आने के लिए कहा और यह भी कहा की कॉलेज में उसकी भी दो थी प्रस्तुतियां है इसलिए आप सभी का चलना बहुत ज़रूरी है| खैर, ना चाहते हुए भी शिखा को अपनी दोनों जुड़वाँ बेटियों के साथ रागिनी के कॉलेज जाना पड़ा|
कार्यक्रम की शुरुआत में गीत संगीत की कई प्रस्तुतियां हुई| उसके बाद माडलिंग राउंड शुरू हुआ| दर्शकों ने तालियों के साथ सभी का उत्साहवर्धन किया| माडलिंग में रागिनी ने भी हिस्सा लिया था| आखरी राउंड में रागिनी के साथ चार और लड़कियों को सेलेक्ट किया गया जहाँ सभी से जज द्वारा एक-एक सवाल पूछकर विजेता घोषित करना था| सवाल-जवाब का दौर शुरू हुआ| इसी कड़ी में जज साहिबा ने रागिनी से सवाल पुछा, “अगर घर में तुम्हारी माँ और भाभी में से किसी एक का साथ देना हो तो तुम किसका साथ दोगी”



पुरे सदन में ख़ामोशी छाई थी| सभी रागिनी के ज़वाब की प्रतीक्षा कर रहे थे| तभी रागिनी ने थोडा आगे बढ़कर कहा, “अगर भाभी सही हो तो अपनी भाभी का”
जज साहिबा ने आगे पुछा, ” क्यों ?”
रागिनी ने ज़वाब दिया, “क्यों की मुझे भी कल किसी की भाभी बनना है”
जवाब सुनते ही पुरे सदन में तालियाँ गूंज उठी| सभी रागिनी की सोच और उसके सटीक जवाब की प्रशंशा कर रहे थे|
रागिनी को विजेता घोषित किया गया| पुरुस्कार लेने से पहले रागिनी ने सभी से कुछ कहने के लिए माइक थामते हुए कहा, “हर बेटी अपनी माँ से बहुत प्यार करती है और माँ भी अपनी बेटी के दिल के सबसे करीब होती है| इसी तरह हमारे घर की बहुएं भी तो किसी की बेटियां है| आज हम किसी की बेटियां है कल से किसी की भाभियाँ और बहुएं बनेंगी| अगर कल से हमें कुछ दुःख हुआ तो हमारी माँ को भी दुःख होगा और इसी तरह हमारे घर की बहु को दुःख हुआ तो उनकी माँ को भी दुःख पहुंचेगा| और इस दुनियां में किसी भी इन्सान को किसी की भी माँ को दुःख  पहुँचाने का कोई हक़ नहीं है इसीलिए हर साँस अपनी बहु को अपनी बेटी समझे तो आगे चलकर उनकी बेटी भी खुश रहेगी|”
रागिनि के इतना कहते ही पूरा सदन एक बार फिर तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा|



     तालियों की गडगडाहट के बिच ही शिखा की साँस ने शिखा को गले से लगा लिया|

छल – हिंदी कहानी | स्टोरी इन हिंदी | कहानियां ही कहानियां

एक बार एक नगर में एक चौर चोरी करने में इतना माहिर हो गया की कोई कभी उसे पकड़ ही नहीं पाता था| चौर रोज नगर में कई घरों के ताले तौड़ देता और घरों से कीमती माल, सोना-चांदी और नगदी ले जाता| रोज-रोज नगर में हो रही चौरीयों से नगर वासी परेशान थे|आखिरकार एक दिन इन चौरीयों से तंग आकर नगर वासियों ने राजा के पास जाने का फैसला किया| अगले दिन नगर वासी एकत्रित होकर राजा के पास राजा के महल में पहुंचे और नगर में प्रतिदिन हो रही चोरियों के निवारण के लिए उचित प्रबंधन करने की विनती की| 


राजा ने प्रजा की समस्या सुनकर नगर कोतवाल को चौर को पकड़ने के लिए तलब किया| राजा ने नगर कोतवाल को सात दिन के भीतर चौर को पकड़ने का आदेश दिया|राजा का आदेश पाकर नगर कोतवाल ने चौर को पकड़ने में अपनी पूरी जान लगा दी और आख़िरकार सातवे दिन चौर पकड़ा गया| चौर को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया गया| सभी दलीलें सुनने के बाद राजा ने चौर को फासी की सजा सुना दी| फासी के लिए चौर को नगर के बिच से फासी स्थल की और ले जाया गया| चौर को देखने के लिए मार्ग पर भारी भीड़ जमा थी| उसी भीड़ में एक मल्लिका नाम की वेश्या भी थी| चौर अत्यन्तं रूपवान और हष्ट-पुष्ट था| चौर के बलवान शरीर को देखकर वेश्या उस पर मोहित हो गई और कोतवाल से चौर को 100 स्वर्ण मुद्राओं के बदले छोड़ने का आग्रह किया| कोतवाल लालची था, वह वेश्या के लालच में फस गया और बोला, “मुझे तुम्हारी शर्त मंज़ूर है लेकिन चौर के बदले में तुम्हें मुझे कोई दूसरा व्यक्ति फासी के लिए भेजना होगा| वेश्या ने चौर की शर्त मंज़ूर कर ली|
वेश्या पर उसी नगर के एक सेठ का पुत्र मोहित था| वह नित्य ही वेश्या के पास आता-जाता रहता था| अगले दिन मल्लिका ने नगर सेठ के पुत्र के आने पर उससे कहा, “यह चौर मेरा निकट सम्बन्धी है| नगर कोतवाल ने उसे छोड़ने के बदले में 100 स्वर्ण मुद्राएँ मांगी है| अतः तुम नगर कोतवाल को यह 100 स्वर्ण मुद्राएँ देकर आ जाओ| मल्लिका के प्रेम में पागल नगर सेठ का पुत्र कोतवाल के पास पहुंच गया| कोतवाल ने उसे मल्लिका द्वारा फासी के लिए भेजा गया आदमी समझकर नगर सेठ के पुत्र को ही फासी पर चढ़ा दिया और चौर को छोड़ दिया|
मल्लिका ख़ुशी-ख़ुशी चौर के साथ रहने लगी| कुछ दिनों बाद चौर का मन मल्लिका से उब गया और उसने सोचा, कि “अगर मेरे जैसे अनजान व्यक्ति के लिए यह अपने प्रेमी को मरवा सकती है तो फिर किसी और के लिए यह मेरी बलि भी दे सकती है|”
बस चौर के इतने सोचने भर की देर थी और चौर मल्लिका का सारा धन लूटकर अगले ही दिन फरार हो गया|
इसीलिए दोस्त कहा गया है, “छल का फल छल के रूप में ही सामने आता है, इसीलिए कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए|”



प्रेरणादायक हिंदी कहानियां | Hindi Short Stories with moral


भय 

Hindi Short Stories with moral

बहुत पुरानी बात है| एक बार एक गाँव से चार मित्र व्यापर करने के उद्देश्य से शहर की और रवाना हुए| शहर गाँव से काफी दूर था| शहर के रास्ते में एक लम्बा जंगल पड़ता था| चलते-चलते चारों थक गए तो कहीं रुकने का आसरा देखने लगे| थोड़ी दूर पर ही एक गाँव था| जैसे-तैसे चारों गाँव की सीमा तक पहुंचें| थोड़ी दूर चलने पर ही उन्हें एक झोंपड़ी दिखाई दी| चारों झोपडी तक पहुंचे और यह सोचकर दरवाजा खटखटाया की यहाँ जो भी रहता होगा वह उन्हें दो रोटी और पानी के लिए मना नहीं करेगा| उन्होंने दरवाजा खटखटाया| द्वार एक वृद्धा ने खोला| राहगीरों को भूखा जानकर वृद्धा ने बड़े स्नेह से चारों को छाछ के साथ भोजन करवाया| वृद्धा को धन्यवाद कहकर चारों फिर अपने रास्ते चल दीये|
राहगीरों के जाने के बाद वृद्धा ने स्वयं के खाने के लिए जैसे ही छाछ उठाई उसे छाछ का रंग लाल नजर आया| उसने दही बिलोंने वाले बर्तन को देखा तो उसे उसमें एक मृत सांप नज़र आया| मृत सांप को देखकर वृद्धा को बहुत दुःख हुआ| उसने सोचा, उन चारों राहगीरों की जान मेरे कारण आज चली गई होगी| अनजाने में मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया है| रात-दिन वृद्धा इसी गम में घुलती रही की उसकी लापरवाही की वजह से चार राहगीरों की जान चली गई|
इधर वे चारों मित्र सकुशल थे| कुछ दिनों में ही काफी धन अर्जित करने के बाद चारों ने अपने गाँव लौटने का निश्चय किया| मार्ग में वे फिर उसी वृद्धा के घर भोजन के लिए रुके| भोजन करने के बाद उन्होंने वृद्धा से कहा – माई! तू हमें भूल गई! हम वे ही है जो कुछ दिनों पहले शहर जाते हुए तेरे घर भोजन के लिए रुके थे|
वृद्धा चारों को जीवित देखकर बहुत खुश हुई और बोली- “में तुम लोगों को सकुशल देखकर आज बहुत खुश हूँ| में तो इतने दिन तुम्हारी चिंता में ही घुले जा रही थी| चारों ने उत्सुकतावश इसका कारण पुछा तो वृद्धा ने कहा – “मेरी असावधानी से उस दिन तुम्हारी छाछ में एक सांप मथा गया था|” वृद्धा के इतना करने पर ही चारों की घबराहट चरम पर पहुँच गई और चारों एक साथ गिरकर म्रत्यु को प्राप्त हो गए|
इसीलिए कहा गया है, “दो डर गया वो मर गया”


संघठन की शक्ति | Hindi Short Stories with moral

एक बार एक गाँव में एक पिता की चार पुत्र थे| लेकिन चारों की एक दुसरे के साथ जमती ना थी| चारों में हमेशा झगडा होता रहता था| इन झगड़ों की वजह से चारों की शारीरिक और आर्थिक स्थिथि के साथ-साथ बोद्धिक और मानसिक स्थिथि भी ख़राब होती जा रही थी| यह सब देखकर उनके पिता बहुत दुखी थे| पिता ने मरते वक़्त चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया और  उन्हें लकड़ी का एक गट्ठर देते हुए कहा, “तोड़ो इसे” | लड़कों ने गट्ठर  इ का भरकस प्रयास किया लेकिन वे गट्ठर को तौड़ ना सके|
अंत में पिता ने चारों को अपने पास बुलाया और गट्ठर की एक-एक लकड़ी को तोड़ने को कहा| लड़कों ने इस बार लकड़ियों को बड़े आराम से तौड़ दिया| तब पिता ने लड़कों को समझाया, कि “यदि लकड़ी के गट्ठर की तरह मिल कर रहोगे तो कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा” और अगर तुम्हारे बिच में फुट रही तो लकड़ियों की तरह ही एक क्षण में नष्ट हो जाओगे|
लड़कों को पिता की बात समझ आ गई और उसी दिन से चारों मिलकर रहने लगे|



प्रेरक प्रसंग | Dharmik Kahaniya

उम्र केवल चार वर्ष | Dharmik Kahaniya

एक राज्य के राजा को जो कोई भी मिले सभी से कुछ ना कुछ पुचकार सीखते रहने का स्वाभाव हो गया था| उसके इस स्वाभाव के कारण ही उसने काफी कम उम्र में बहोत ही ज्यादा अनुभव ग्रहण कर लिया था| सीखते रहने की इस प्रवृति के कारण वह हमेशा किसी ना किसी से कुछ ना कुछ पूछता रहता था|
एक बार राजा राज्य भ्रमण के लिए वेश बदलकर अपने महल से बाहर निकला ही था की उसे महल के बहार ही एक वृद्ध किसान मिल गया| किसान के बाल पाक गए थे लेकिन शरीर में अभी भी जवानों जैसी चेतना विद्यमान थी| किसान की चेतना का रहस्य जानने और पूछन की अपनी प्रवृति के फल स्वरुप उसने वृद्ध से पुछा, “महानुभाव!आपकी आयु कितनी होगी ?
वृद्ध ने राजा को मुस्कान भरी दृष्ठि से देखा और बोला, ” कुल चार वर्ष”| राजा किसान की बात सुनकर मुस्कुरा दिया| राजा ने सोचा वृद्ध शायद मजाक कर रहा है इसलिए राजा ने दुबारा किसान से वाही सवाल पुछा| लेकिन इस बार भी किसान ने वही जवाब दिया| किसान का ज़वाब सुन राजा क्रोध से भर गया| एक बार तो विचार आया की वृद्ध किसान को बता दिया जाए की वह कोई आम आदमी नहीं वरन वेश बदलकर आया हुआ इस राज्य का रजा है| लेकिन फिर राजा को अपने गुरुवार की कही एक बात याद आइ कि “क्रोध और उत्तेजित हो उठने वाले व्यक्ति कभी भी ज्ञान हासिल नहीं कर सकते| यह सोचकर राजा का क्रोध वहीं शांत हो गया|
अब राजा ने नए सिरे से पुछा, ” पितामह! आपके बाल पाक गए हैं, आप लाठी लेकर चल रहें हैं, शरीर में झुरियां पड गई है…मेरा अनुमान है कि आप 80 वर्ष से कम के ना होंगे लेकिन फिर भी आप आपकी उम्र महज 4 वर्ष ही बता रहें हैं यह कैसे संभव हो सकता है ?
वृद्ध ने गंभीर होकर कहा, आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं, मेरी उम्र 80 वर्ष ही है, किन्तु मैंने अपनी ज़िन्दगी के 76 वर्ष धन कमाने, ब्याह शादी करने और बच्चे पैदा करने में गवा दिए| ऐसा जीवन तो कोई पशु भी जी सकता है, इसलिए में उसे जीवन नहीं मानता हूँ|
यह बात मुझे चार वर्ष पहले समझ आई और मैंने अपना जीवन इश्वर उपासना, जप-तप, करुणा और सेवा में लगा दिया है| इसलिए में अपने आप को महज 4 वर्ष का ही मानता हूँ|
राजा को वृद्ध की बात समझ आ गई और वह राजमहल लौटकर सादगी, सेवा और सज्जनता का जीवन जीने लगा|




भगवान सबको देखता है | Dharmik Kahaniya

एक बार एक गाँव में एक भला आदमी बिक्री से दुखी था| यह देख एक चौर को उस पर दया आ गई| वह उस बेरोजगार आदमी के पास गया और बोला, “मेरे साथ चलो, चोरी में बहुत सारा धन मिलेगा” आदमी बैकर बैठे-बैठे परेशान हो गया था| इसलिए वह उस चौर के साथ चोरी करने को तैयार हो गया| लेकिन अब समस्या यह थी की उसे चोरी करना आती नहीं थी|
उसने साथी से कहा, “मुझे चौरी करना आती तो नहीं है, फिर कैसे करूँगा|”
चौर ने कहा” तुम उसकी चिंता मत करो, मई तुम्हें सब सिखा दूंगा”
अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक किसान का पका हुआ खेत काटने पहुँच गए| वह खेत गाँव से दूर जंगल में था इसीलिए वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता न था| लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से उसने अपने नए साथी को खेत की मुंडेर पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर आवाज लगाने को कहकर खुद खेत में फसल चोरी करने पहुँच गया|
नए साथी ने थोड़ी ही देर में अपने साथी को आवाज लगे, “भर जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो…खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है” चोर ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह फसल काटना छोड़ उठकर भागने लगा|
कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पुछा, “मालिक कहाँ खड़ा था? कैसे देख रहा था?



नए चोर ने सहजता पूर्वः जवाब दिया, “मित्र! इश्वर हर जगह मौजूद है| इस संसार में जो कुछ भी है उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है| मेरी आत्मा ने कहा, इश्वर यह भी मौजूद है और हमें चोरी करते हुए देख रहा है…इस स्थती में हमारा भागना ही उचित था|
पहले चौर पर बेरोजगार आदमी की बातों का इतना प्रभाव पड़ा की उसने चोरी करना ही चौद दिया|


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