Zakir Khan Shayari | Zakir Khan Poem | Zakir Khan Dialogues





ये कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूंगा ,
क्योंक उससे पहले तुम्हारी और मेरी 
बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम 

 तेरी बेवफाई के अंगारों में  लिपटी रही है रूह मेरी ,
मैं इस तरह आज ना होता  जाती तू मेरी 

वो तितली की तरह आई और जिंदगी बाग़ कर गयी ,
वो तितली की तरह आई और जिंदगी बाग़ कर गयी ,

मेरे जितने भी इरादे नापाक उन्हें  पाक कर गयी
हम दोनों में बस इतना  सा फर्क है 
उसके सब लेकिन मेरे नाम से शुरू होते हैं ,

और मेरे सारे काश उस  आकर रुकते हैं 
इश्क को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्नो पर ,

 आप उसे किताबों में डाल कर मुश्किल ना कीजिए 


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ज़िन्दगी से कुछ ज्यादा नहीं बस इतनी सी फरमाइश है ,
अब तस्वीर से नहीं तफसील से मिलने की ख्वाहिश है 

ये सब कुछ जो भूल गयी थी तुम या शायद जानकर छोड़ा था तुमने ,
अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर है मैंने सब ,

जब आओगी तो ले जाना 
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं  तैयार कर लिया ,
मैंने हर जगबाट बाजार में रख कर इश्तेहार कर लिया


बेवज़ह बेवफाओं को याद किया है ,

गलत लोगों पर बहुत वक्त बर्बाद किया है
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कोई हक़ से हाँथ पकड़ कर दोबारा नहीं बैठाता ,
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुक्सान हुआ करते हैं


कुछ के जाने का गम है ,

कुछ के होने की तसल्ली है ,
बस इतनी से कहानी है हमारी

मेरी ज़मीन तुमसे गहरी है ,

याद रखना मेरा आसमान भी तुमसे ऊँचा होगा
हर एक दस्तूर से  बेवफाई मैंने शिद्दत से है निभाई ,
रास्ते भी खुद ढूंढे और मंज़िल भी खुद बनाई
दोस्ती आईनो से  कभी लम्बी नहीं चलती ,
इतनी ईमानदारी भी रिश्तों के लिए अच्छी नहीं होती

हर एक कॉपी के पीछे कुछ ख़ास लिखा है ,

बस इस तरह मेरे इश्क का इतिहास लिखा है
तू दुनिया में चाहे जहाँ भी रहे ,
अपनी डायरी में मैंने तुझे पास लिखा है



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यूं तो भूले हैं हमने लोग कई , पहले भी बहुत से 
पर तुम जितना कोई उनमें से याद नहीं आया 

इम्तेहान ए इश्क का मैंने खूब रिवीज़न कर लिया ,

उसकी याद भी समझ ली ,उसे भूल के भी देख लिया 


वैसे तो मैं बड़ा सख्त हूँ 

पर पिघल गया 





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