Poetry Of Atal Bihari Bajpai
अटल बिहारी वाजपेयी (२५ दिसंबर, १९२४-१६ अगस्त २०१८) भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व प्रखर वक्ता भी थे।
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य-प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे।
वहीं शिन्दे की छावनी में २५ दिसम्बर १९२४ को उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता हिन्दी व ब्रज भाषा के कवि थे।
अटल जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में हुई। कानपुर के डी.ए.वी. कालेज से राजनीति शास्त्र में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
2014 दिसंबर में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। उनकी कुछ प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ हैं : मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराय की कुण्डलियाँ, संसद में तीन दशक, अमर आग है, कुछ लेख, कुछ भाषण, सेक्युलरवाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि।
आओ फिर से दिया जलाएँ हरी हरी दूब
पर पहचान गीत नहीं गाता हूँ
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ गीत नया गाता हूँ
ऊँचाई कौरव कौन, कौन पांडव दूध में दरार
पड़ गई मन का संतोष झुक नहीं सकते दूर
कहीं कोई रोता है
जीवन बीत चला मौत से ठन गई राह कौन
सी जाऊँ मैं? मैं सोचने लगता हूँ
हिरोशिमा की पीड़ा नए मील का पत्थर मोड़ पर
आओ मन की गांठें खोलें नई गाँठ लगती
यक्ष प्रश्न क्षमा याचना स्वतंत्रता दिवस की
अमर आग है
परिचय आज सिन्धु में ज्वार उठा है
जम्मू की पुकार कोटि चरण बढ़ रहे ध्येय
की ओर निरन्तर गगन मे लहरता है
भगवा हमारा उनकी याद करें अमर है
गणतंत्र सत्ता मातृपूजा प्रतिबंधित
कण्ठ-कण्ठ में एक राग है
आए जिस-जिस की हिम्मत हो एक
बरस बीत गया जीवन की ढलने लगी साँझ पुनः
चमकेगा दिनकर कदम मिलाकर
चलना होगा पड़ोसी से रोते रोते रात
सो गई बुलाती
तुम्हें मनाली अंतरद्वंद्व बबली की
दिवाली अपने ही मन से कुछ बोलें मनाली
मत जइयो देखो हम बढ़ते ही जाते जंग
न होने देंगे आओ!
मर्दो नामर्द बनो सपना टूट गया
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आओ फिर से दिया जलाएँ हरी हरी
दूब पर पहचान गीत नहीं गाता हूँ
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ गीत नया
गाता हूँ ऊँचाई कौरव कौन,
कौन पांडव दूध में दरार पड़ गई
मन का संतोष झुक नहीं सकते दूर
कहीं कोई रोता है जीवन बीत चला
मौत से ठन गई राह कौन सी जाऊँ मैं?
मैं सोचने लगता हूँ हिरोशिमा की
पीड़ा नए मील का पत्थर मोड़ पर आओ
मन की गांठें खोलें नई गाँठ लगती
यक्ष प्रश्न क्षमा याचना स्वतंत्रता
दिवस की पुकार अमर आग है
परिचय आज सिन्धु में ज्वार उठा है
जम्मू की पुकार कोटि चरण बढ़
रहे ध्येय की ओर निरन्तर गगन मे
लहरता है भगवा हमारा उनकी याद
करें अमर है गणतंत्र सत्ता
मातृपूजा प्रतिबंधित कण्ठ-कण्ठ में
एक राग है आए जिस-जिस
की हिम्मत हो एक बरस बीत गया
जीवन की ढलने लगी साँझ पुनः
चमकेगा दिनकर कदम मिलाकर
चलना होगा पड़ोसी से रोते रोते
रात सो गई बुलाती तुम्हें मनाली
अंतरद्वंद्व बबली की दिवाली
अपने ही मन से कुछ बोलें मनाली
मत जइयो देखो हम बढ़ते ही
जाते जंग न होने देंगे आओ! मर्दो
नामर्द बनो सपना टूट गया विश्व
हिन्दी सम्मेलन अस्पताल की याद
रहेगी धरे गए बंगलौर में पाप का
घड़ा भरा है बजेगी रण की भेरी अनुशासन
पर्व जेल की सुविधाएँ अंधेरा
कब जाएगा नहीं पुलिस का पीछा छूटा
सूखती रजनीगन्धा गूंजी हिन्दी
विश्व में घर में दासी कार्ड महिमा मंत्रिपद
तभी सफल है बेचैनी की रात
पद ने जकड़ा न्यूयॉर्क धधकता गंगाजल है
अनुशासन के नाम पर मैंने
जन्म नहीं मांगा था न दैन्यं न पलायनम्
स्वाधीनता के साधना पीठ धन्य
तू विनोबा कवि आज सुना वह गान रे वैभव
के अमिट चरण-चिह्न