दर्द की गलियों का हमसफ़र, शायर जॉन एलिया



Introduction:


जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1930 में अमरोहा में हुआ था.जॉन एलिया उर्दू के एक महान शायर है.इनको बड़े ही अदब से पढ़ा जाता है और ये इस समय के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में से एक है.जॉन सिर्फ पाकिस्तान के ही नहीं बल्कि हिनस्तान के भी बहुत प्रसिद्द शायर है.इनको पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के साथ-साथ पुरे दुनिया में बड़े ही अदब से पढ़ा और जाना जाता है.




जॉन अपने माता-पिता की सब संतानों में सबसे छोटे थे.जॉन के पिता का नाम अल्लामा शफ़ीक़ हसन एलिया था.इनके पिता एक खगोलशाश्त्री थे और बहुत अच्छे कवि भी थे साथ ही उन्हें कला और साहित्य की भी अच्छी जानकारी थी. उन्हें इन सब विषयों से काफी गहरा लगाव था.शायद इसीलिए जॉन में भी ये सब गुण पिता से ही आए होंगे.




जॉन भी पिता की तरह ही शायरी में माहिर होते चले गए और जब वे सिर्फ 8 साल के थे तभी उन्होंने अपनी पहली कविता लिख दी थी,जो की बहुत ही छोटी उम्र थी. उनके पिता की इन सब विषयों पर पकड़ और रुचि देखकर उनको बनी अपने पिता से सिखने भरपूर प्रेरणा मिली.और उनकी प्रकृति भी इसी तरह की होती चली गयी.




 Personal life:





जॉन का विवाह उर्दू लेखक ज़ाहिद हिना से हुआ. जॉन जब साहित्यिक पत्रिका” इंशा” के संपादक बने थे, उनकी मुलाक़ात एक लेखिका से हुई थी जो कि बाद में उनकी शरीके हयात बनी.ज़ाहिद हिना भी उर्दू की एक बहुत ही अच्छी लेखक,कहानीकार,नाटककार व संपादक है

जॉन की शादी के बाद दो बेटिया और एक बेटा हुआ.लेकिन जॉन की शादी ज़्यादा दिन तक नहीं चली और इन दोनों का तलाक़ हो गया.इसके बाद जॉन डिप्रेषन के शिकार हो गए,और उन्होंने शराब भी पीना शुरू कर दिया था.




जॉन एलिया एक कम्युनिस्ट विचारधारा वाले व्यक्ति थे.और वे नहीं चाहते थे कि भारत का विभाजन हो.लेकिन इसको सब को न चाहते हुए भी स्वीकार करना पड़ा और जॉन ने भी इसे एक समझौते की तरह ही स्वीकार कर लिया था.

1957 में जॉन पकिस्तान चले गए और ज़िंदगी भर के लिए वही बस गए, उन्होंने कराची में रहना पसंद किया और फिर पूरी ज़िंदगी वही गुज़ारी.

Career:

जॉन एलिया को अलग-अलग विषयों का अच्छा ज्ञान था.इस कारन से वे साहित्यकारो में जल्दी ही प्रसिद्धि पाने लगे.वे साहित्यकार होने के साथ ही बहुत अच्छे दार्शनिक भी थे.इसीलिए उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में बहुत प्रशंसा मिलने लगी थी.

जॉन एलिया एक बहुत ही अच्छे लेखक थे, लेकिन उनकी पुस्तकें बहुत देर से छपनी शुरू हुई.उनकी पहली पुस्तक  तब छपी थी जब वे 60 साल के थे.जो कि एक कविता संग्रह था जिसका नाम “हो सकता है” था.




उनकी कविता का दूसरा संग्रह तब प्रकाशित हो पाया जब उनकी मृत्यु हो चुकी थी.अर्थात उनकी मौत के एक वर्ष बाद 2003 में.जॉन एलिया की मृत्यु 2002 में कराची में हुई थी. और इस कविता संग्रह का तीसरा भाग 2004 में “गुमान” से प्रकाशित किया गया.

 जॉन के बड़े भाई रईस अमरोहावी को इस्लामिक कट्टरपंथी लोगो ने मार डाला था.इसके बाद से जॉन ने धर्म के ख़िलाफ़ संभल कर बोलना शुरू कर दिया था.



जॉन के द्वारा लिखा गया साहित्य आसानी से उपलब्ध नहीं है,लेकिन जॉन आज भी शायरी की दुनिया का एक बहुत बड़ा नाम है और उनकी मक़बूलियत और चाहत आज भी युवाओं के दिलों में बरकरार है.





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