Worlds Best Ghazal


Worlds Best Ghazal



कुछलकीरें रोज़ नक्शे सेमिटा देती  हैआग
कैसेकैसे शहर मिट्टीमें मिला देती हैआग
दिलजो अब इस दर्जावीराँ है कभी आवादथा
इश्क़है इक आग, क्या सेक्या  बनादेती है आग
जो कली खिलती हैक्यारी में जलादेती है धूप
जो दिया जलता हैधरती पर बुझा  देती है आग
ज़िंदारहना जलते रहने केबरावर है मगर
जिंदगीइक आग है कुंदनबना देती है आग
एक वच्चा भी मिला झलसेहुए अफ़रादमें
पेड़के हमराह गुलबूटे जलादेती है. आग
यादअब्बल तो अब आतीही नहीं उसको शऊर
ओर आती है तो सीने में लगा देती हैआग
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सुना चुका हूं जो किस्सा, नहीं सुनाऊँगा
नयी है रात, दिया भी नया जलाऊंगा
मेरी ग़ज़ल है सफ़र- नामा-ए-हयात’ मेरा
नफ़्स-नफ़्स की संयाहत तुम्हें कराऊँगा
सुना यह है कि वो शिद्दत  से याद करता है
अगर मिली मुझे फुरसत कभी तो जाऊँगा
मुझे संभाल के रखना कि अब यहाँ से भी
चला गया तो कभी लौटकर न आऊँगा
शऊर ! ग़ालिवो-इकबाल’ हों कि फ़ैजो-फिराकः
मैं अपना रास्ता सबसे अलग बनाऊंगा
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मैं खाक हूं, आब हूँ, हवा हूँ

और आग की तरह जल रहा हूँ
तहखाना-ए-जेहून में न जाने
क्‍या शै है जिसे टटोलता हूं
वहरूप नहीं भरा है मैंने
जैसा भी है सामने खड़ा हूं
सुनता तो सभी की हूं मगर मैं
करता हूँ वही जो चाहता हूँ
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अच्छों को तो सव ही चाहते  हैं
है कोई? कि मैं वहुत बुरा हूँ
पाता हूँ उसे भी अपनी जानिव’
मुडकर जो किसी को देखता हूँ
बचना है मुहाल इस मर्ज में
जीने के मर्ज में मुब्तला हें
सुनता ही न हो कोई तो क्यों मैं
चिल्लाऊं, फुर्गाँ करूँ, कराहु
औरों से तो इज्लिनाव’ था ही
अब अपने वजूद से खफा हूँ
वाकी हैं जो चंद रोज़, वो भी
तकदीर के नाम लिख रहा हूँ
लिखता हूं हर एक वात सुनकर
ये बात तो मैं भी कह चूका हूं
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कुछदिनों अपने घर रहाहूँ मैं
और फिर दर व्दर  रहाहूँ  मैं
दूसरोंकी ख़बर तो क्यालेता
खद मे भी वेखवररहा हूँ में
वक् गो हमसफरने था मेरा
वक्तका हमसफर रहा हैं मैं
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जीनताजात कासफ़र और रात
धीरे धीरेउतर रहा हूँ मैं
यक-ब-यक किसतरह वदल जाऊं
रफ्तारफ्ता सुधर रहा हूँमैं
तू भी देखे तोअजनबी जाने
अबकेवह स्वांग भर रहा हूँमें
बेहक़ीक़त हैशोरेशहर कि अब
गूनगूनातागृजर रहा हूँ मैं
आग है और सुलगरही है हयात
राखहैं और बिखर रहाहूं में
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जो कुछ कहो कबूलहै तकरार क्या करूँ
शर्मिंदा अबतुम्हें सरेवाजार क्याकरूं
है वा शिगाफ मुझपे तुम्हारी इनायते
जो अनकही हो, उसेइजहार क्या करूं
मालूमहै कि पार खुलाआस्मान है
छटतेनहीं हैं ये दरोदीवार क्या करूं
इस हाल में भीसांस लिए जा रहाहूँ में
जातानहीं है साँस काआज़ार कया करूं
फिरएक वार वह रुखेमासूम देखता
खलतीनहीं है चश्मेगुनहगारक्या करूं
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तनहाईमें तो फूल भीचुभता है आँख में
तेरेबगैर गोशागुलजारक्या करें
यह पुर सुकून सुबह, यह मैं, यह फ़ज़ाशऊर
वो सो रहे हैं, अब उन्हें बेदार क्या करूं
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हमरकाबोहमसफर कोई ने था
वर्नासद्देरहगुज़र कोई था
रास्तेमें एक आवIज़ आईथी
मुडके देखा था मगरकोई था
कोईहोता तो रुलाता इसतरह
चश्मेतर चश्मेतर! कोई था
कौनकरता है पसंद आवारगी
शायदआवारा का घर कोईन था
चाहतेथे हम भी सुस्तानामगर
रास्तेभर में शजरकोई था
दस्तकदेना तमाशा हो गया
रोशनीक्यों थी? अगर कोई था
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आपकेहोंटों में निकला थामगर
खश हमारे नाम पर कोईन था
मेरीतनहाई का साथी शहरमें
जानताहै शहरभर, कोई था
इब्तिलाके दौर में भीखैर ख़्वाह
था तो लेकिन इसकदर कोई था
काशहो जाती  मुलाकालआप से
इत्तेफ़ाकनरात घर कोई नेथा
चिटठयाँआती रहीं, जाती रहीं
वीचमें गो नामावर कोईने था
पारसातो और भी थेशहर में
आप जैसा  बाहुनर  कोईने था
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दिलके आईने को पहुँचाता ठेस
इस कदर नाजुकनज़रकोई था
रात, आलूदा थे सव दामनमगर
मुहतसिव आया तो तरकोई था
टिकटिकीवाँधे हुए तकता राहा
गो मेरे पेशे-नजर कोई था
छेड़दी क्यों दास्तानेदिल शऊर
क्याफ़साना  मुख़्तसरकोई ने था
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किनारेआज कश्ती लग रही है
मुझेहर चीज़ अच्छी लगरही है
तेरेहोते जो जचती हीनहीं थी
वो सूरत आज खासोलग रही है
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जहाँतक हो सके, आंखेखुली रख

अगरदुनिया बुरी भी लगरही है
वो अच्छी कह रहा हैअपनी हालत
मगरजैसी है वैसी लग रहीहै
गलीपर एक खामोशी हैतारी
मे आहट तो तुम्हारीलग रही है
मुहब्बतमें पलट आता हैमाज़ी
जवानी, नौजवानी लगे रहो है
कोईगुम हो गया हैभीड़ में क्या
नज़रभटकी हुईसी लगरही है
चरागाँदीद के काबिल हैलेकिन
मुझे तोरात अंधेरी लग रही है
शऊर, आदम आदमजादकोई
अजबसुनसान बस्ती लग रही है
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और दरदर फ़िरा, आजमा मुझे
बस, मेरे पर्दादार बस, अब नहींहोसला मुझे
सख्तनजरफरेव है आईनाखानाजमाल
उसकीचमकदमक देख, देख बुझाबुझा मुझे
जिसहुजूमेखल्क से घुटके अलग हुआ तोमैं
कतरासतहेबहरथा, चाट गई हुवामुझे
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सब्रकरो मुहासिवो‘, वक् तुम्हेंबताएगा
दह रको मैंने क्या दिया, दह र से क्या मिलामुझे
सिर्फउसी के सामने ख्यारकिया था आस ने
यासने फर्दफर्द  पर आईना करदिया मुझे
तेरेही मिस्र का मलाल, तेरेही नज्द का ख्याल
शहरशहर, कूकू, गामगाम थामुझे
कारगहेबका मुझ जातोहयातोकायनात
जातोहयातोकायनात, दायराफ़ना मुझे
जातोहयातोकायनात बेसरोपाबेसबात
बेसरोपाबेसवात शै से उम्मीदक्या मुझे
रातलुग़ाते उम्र से मैंनेचुना था एक लफ्ज़
लफ़्ज़बहुत अजीब था, यादनहीं रहा मुझे
था गुजरा, गुज़्र गया वक्तेविसाल ओर बस
खाक़भी छानता फिरा, फिर कभीमिला मुझे
मैंनेहेंसीख़ुशी उसे जानेदिया था हाँ मगर
यह तो मुआहिदा था, मुड़ के देखना मुझे
शामउस आदमी की याद, आई जो एक उम्रके बाद
जानियेकिसी अज्जाब में कर गईमुब्तिला मुझे
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मैंनेउसे शिकस्त दी सीनासीना, लबलब
सीनासीना, लबलब, उसनेहरा दिया मुझे
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जो सुना थादहर से. उसकी जुबाँसे सुन लिया
अब मुझे कोई कुछकहे. फ़िक्र नहीं जरा मुझे
है तेरी मेहरबानियां, भूलीहुई कहानियां
भूलीहुई कहानियां याद अबदिला मुझे
फन को समझ  लियागया महज अतियाफ़लक
सईरियाज़कासिला खूब दिया गयामुझे
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महरमखासदेखना, सोतो नहीं गया शऊर
देरहुई सुने हुए, कोईनई सदा मुझे
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परथर

रेतसे बुत ने वना, मेरे अच्छे फ़नकार
एक लम्हें को ठहर, मेंतुझे पत्थर लादूँ
मेंतेरे सामने अंबार लगा दूँ लेकिन
कौनसे रंग कापत्थर तेरे काम आएगा?
सुर्खपत्थर ? जिसे दिल कहतीहै बेदिल दुनिया
या वह पथराई हुईआँख का नीला पत्थर
जिसमेंसदियों के तहस्युर केपड़े हों डोरे ?
क्यातुझे रूह के पत्थरकी जरूरत होंगी?
जिसपे हक वात भीपत्थर की तरह गिरतीहै
इक वो पत्थर है, जिस कहते हैं तहज़ीबेसफ़ेद
उसकेमरमर में सियह खूनझलक जाता है
एक इंसाफ़ का पत्थर भीतो होता है, मगर
हाथमें तेशाजरहो तो वह हाथआता है
जितने मैयार हैं इस दोर के, सबपत्थर हैं
जितनेअफ़कार हैं इस दोरके, सब पत्थर हैं
शेरभी, रक् भी, तसवोरोगिना भी पत्थर
मेराइलहाम, तेरा जेह नेरसा भी पत्थर

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