महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब और उनकी अमर  व कभी न भुलाई जा सकने वाली शायरी


Mirza Ghalib
Mirza Ghalib

आज हम यहाँ मश हूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में बात करने वाले है. 
उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक बाते आपको यहाँ पढ़ने को मिलेंगी.अगर आपको पसंद आये तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके ज़रूर बताये.

महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब और उनकी अमर  व कभी न भुलाई जा सकने वाली शायरी.


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले.
बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी कम निकले.




दिलों के जज़्बात को इस अंदाज़ में बयां करने वाले शायर मिर्ज़ा ग़ालिब को शायरी की दुनिया का कोहीनूर कहा जाता है.

उन्होंने अपनी शायरी से लोगों के जज़्बातों को ज़ुबान दी और एहसासों को ज़िंदा किया और अपनी क़लम के ज़रिये उन्होंने शायरी को एक अलग ही मुकाम दिया.


तभी तो इतने सालो पहले लिखे गये उनके शेर और शायरी आज भी लोगो के बीच इतने ज़्यादा प्रचलित है.


उनकी शायरी में एक बहुत ही खास बात थी और वो ये कि उनकी शायरी में एक आम इंसान का दर्द बहुत ही अच्छे से दिखाई देता है.


वो अपनी शायरी को कुछ इस अंदाज़ में लिखते थे कि सुनने वाले के मुँह से आह निकल जाये और हर सुनने वाले को यही लगता था कि ये उनके लिए ही लिखा गया है.


मिर्ज़ा ग़ालिब दर्द के साथ अपने जज़्बातों को ज़ाहिर करना बहुत अच्छे से आता था और वो इस दर्द को पेश करने में माहिर थे.


वो कागज़ पर अपनी कलम को कुछ इस तरह चलाते थे की सब आज भी उनकी शायरी से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते है.


उसके पीछे वजह ये भी थी कि उनका पूरा जीवन ही बहुत मुश्किलों में बीता था. लेकिन इसी वजह से वो अपनी शायरी में इतना दर्द डाल पाए, जो हर दिल को छू जाता है. 


और इसीलिए शायद मिर्ज़ा ग़ालिब को शायरी की दुनिया का अनमोल रत्न कहा जाता है.


मिर्ज़ा ग़ालिब का परिचय:

मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असद उल्ला बेग खान था.और उनका जन्म आगरा में हुआ था.उनके दादा मध्य एशिया के समरकंद से सन् 1740 के आसपास भारत आये थे.उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आये। 

मिर्ज़ा ग़ालिब का बचपन:


मिर्ज़ा ग़ालिब पिता बचपन में ही गुज़र गए थे और उसके बाद वे अपने चाचा के पास रहने लगे लेकिन कुछ समय बाद उनकी भी मृत्यु हो गयी और वे अपने ननिहाल में रहने लगे.

वहा पर उनको किसी तरह की कोई कमी नहीं हुई क्यूंकि उनका ननिहाल काफी अमीर था और इसी कारण से वे पतंगबाज़ी,और जुए जैसी आदतों के शिकार हो गए.


मिर्ज़ा ग़ालिब की शादी 13 साल की उम्र में उमराव बेगम के साथ 9 अगस्त 1810 में हो गयी थी. और उनकी पत्नी की उम्र भी उस समय सिर्फ 11 साल की थी.


मिर्ज़ा ग़ालिब की पढ़ाई लिखाई:

मिर्ज़ा ग़ालिब के पिता और चाचा के बचपन में ही गुज़र जाने के बाद उन्हें अपने ननिहाल भेज दिया गया था.

मिर्ज़ा ग़ालिब की माँ पढ़ी लिखी महिला थी.लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब इसके बावजूद भी पढ़ नहीं पाए, और वे नियमित पढ़ाई लिखाई से दूर ही रहे.मिर्ज़ा ग़ालिब को ज्योतिष,तर्क,दर्शन,और रहस्यवाद अदि की शिक्षा जरूर मिलती रही.

फ़ारसी की शिक्षा मिर्ज़ा ग़ालिब को उस समय के मशहूर विद्वान् मौलवी मोहम्मद मोअज़्ज़म से मिली जो की बहुत ही मशहूर विद्वानों में से एक थे और आगरा के पास के ही रहने वाले थे.


मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन:


मिर्ज़ा ग़ालिब की किसी भी चीज़ को ग्रहण करने की शक्ति बहुत ही तेज़ थी. और उन्होंने पारसी कवी ज़हूरी के बारे में और उनके शेर और शायरी के बारे अपने आप ही अध्ययन करना शुरू कर दिया था.

और अध्ययन करते-करते उनकी रूचि शेर और शायरी में भी बढ़ने लगी थी. उन्होंने फ़ारसी में ग़ज़ले लिखनी भी शुरू कर दी थी.


ग़ालिब कभी भी किसी मुश्किलों से घबराते नहीं थे बल्कि वे खुद को मज़बूत बनाते रहे.फ़ारसी पढते-पढ़ते उनकी रूचि शेर और शायरी में हो गयी और उन्होंने शायरी लिखना शुरू कर दिया.


ग़ालिब ने जब लिखने का आग़ाज़ किया तो वे इस काम को अपनी आखिरी सांस तक करते रहे.मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर और शायरी से उस समय के नवाब और राजा, महाराजा बहुत ही प्रसन्न थे वे उनको अपने दरबार में बुलाते ही रहते थे.

मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ मशहूर शेर और शायरी को हम यहाँ पर पेश कर रहे है उम्मीद है आपको पसंद आएंगे… 


Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Mirza Ghalib Shayari in Hindi
Mirza Ghalib Shayari in Hindi


Dil -a- nadan tuje hua kya hai ,
Akhir is dard ki dawa kya hai.


दिल -ऐ- नादाँ तुझे हुआ क्या है 
आखिर इस दर्द की दवा क्या है.

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Aah ko chahiye ek umar asar hone tak,
kon jita hai teri zulf ke sir hone tak

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

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Zahid sharab pine de masjid me bethkar

Ya wo jageh bata de jaha khuda na ho.


जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ खुदा न हो.

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Rone se or ishq me bebaq ho gaye,
Dhoye gaye ham ese ki bas pak ho gaye.


रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए,
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए. 


मिर्ज़ा ग़ालिब को बचपन से शेर लिखने आदत सी पड़ गयी थी.मिर्ज़ा ग़ालिब ने 10 से 11 साल की उम्र में ही शेर लिखना आरम्भ कर दिया था.

मिर्ज़ा ग़ालिब शेर-शायरी लिखने का जुनून इस कदर हावी था की जब वो सिर्फ 25 साल के थे तभी उन्होंने लगभग 2000 शेरो का एक दिवान तैयार कर लिया था.


ऐसा कहा जाता है कि एक बार मीर तकी मीर के सामने ग़ालिब के एक प्रसंशक ने उनके कुछ शेर सुनाए और उनकी बहुत तारीफ भी की,तब मीर तकी मीर ने कहा था की, अगर इस लड़के को कोई काबिल उस्ताद मिल गया तो ये बहुत ही बड़ा शायर बनेगा नही तो ये बेकार शायरी करने लगेगा. और ये बात आगे चलकर सच साबित हुई, क्युकी लोग उनकी शायरी को सच में निरर्थक कहने लगे थे.

मीर की मृत्यु के समय ग़ालिब सिर्फ 13 साल के ही थे. और इतने साल पहले वो मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे जो भविष्य वाणी करके गए थे वो मिर्ज़ा ग़ालिब पर एकदम सटीक बैठी.क्युकी मीर भी बहुत ही अनुभवी शायर थे.


Mirza Ghalib Shayari in Hindi



लेकिन लोग से अपनी आलोचना सुनने के बावजूद भी मिर्ज़ा ग़ालिब ने कभी लिखना नहीं छोड़ा.

मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी संग्रह को दीवान कहा जाता है.जो की 10 भागों में प्रकाशित किया गया है.और इसकाअलग-अलग भाषाओं में अनुवाद भी हो चूका है.

ग़ालिब की शायरी में उस समय की राजनीतिक,और तात्कालिक स्थिति का वर्णन देखने को मिलता है.शुरू में ग़ालिब की शायरी को लोग पसंद नहीं करते थे लेकिन उन्होंने इससे हार कर कभी लिखना नहीं छोड़ा और उसमें महारत हासिल की.और लोगो को दिखाया की वे उर्दू के कितने बड़े शायर है.

आज अगर हम शायरो के बारे सोचते है तो सबसे पहला नाम हमारे दिमाग में ग़ालिब का ही आता है.यही मिर्ज़ा ग़ालिब की जादुई शायरी असर है.वो हम सबके दिमाग में बस चुके है.

भले ही उस समय लोगो के दिलो में उनको जगह बनाने में कुछ समय लगा हो.लेकिन आज वो सबके दिलो पर राज करते है.और उनको उर्दू के सबसे बड़े शायर के रूप में जानते है.

लेकिन सबके दिलो राज़ करने वाला ये मशहूर शायर अपने आख़िरी वक़्त में बहुत ही क़र्ज़ में डूब चूका था.उनको किशोरावस्था से ही शराब पीने की आदत पढ़ गयी थी और वे अपनी इस आदत को कभी नहीं छोड़ पाए.



Mirza Ghalib Shayari in Urdu
Mirza Ghalib Shayari in Urdu


और जब भारत में आज़ादी की क्रांति पूरे जोर शोर से फैल रही थी उस मिर्ज़ा ग़ालिब को भयंकर आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ रहा था.

उनकी पेंशन भी बंद हो चुकी थी.लगातार मुसीबतों के चलते उनका स्वास्थ्य गिरता चला जा रहा था,यहाँ तक की उनका खाना पीना भी बहुत कम हो गया था,और उनकी नज़र कमज़ोर होने के कारण उनको ठीक से दिखाई देना भी बंद हो गया था.

और आख़िरकार अपने शेर और शायरी से सबके दिलों पर राज करने वाले इस फनकार मिर्ज़ा ग़ालिब ने 15 फेबुअरी 1869 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

उम्मीद है आपको मिर्ज़ा ग़ालिब पर लिखा गया ये आर्टिकल पसंद आया होगा.अगर आपको ये पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों में और सोशल मीडिया में ज़रूर शेयर करे.और अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर ज़रूर बताये.



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