ghazals
Ghazals
Some of the Awesome Ghazal of great poets for you, these ghazals will definitely touch your heart and you will feel them and That will settle forever in the depths of your heart.
दिल को मिलता है सुकूं तुझसे दिल लगाने पर
रूह ख़ुश होती है तुझसे नज़र मिल्राने पर।
मेरी सॉसों पे तो बस हक़ ए ख़ुदा तेरा है
साथ छोड़ेंगी मेरा एक तेरे बुलाने पर।
घेरते हैं गमों के साये जब भी आके मुझे
शुक्रिया राहत-ए-गाँ बनके चले आने पर।
तूने सुर मुझको दिया है तेरी तारीफ़ करूँ
मुझको आता है मज़ा तेरी ग़ज़ल गाने पर।
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हमको न थी ख़बर हमें आना कहाँ पे था
बिगड़ी हुई क़िस्मत को बनाना कहाँ पे था।
चुपके से चल दिये कहीं, वो तो लगा के आग
हमको न थी ख़बर के बुझाना कहाँ पे था।
जो तीरों की बरसात की उनकी निगाह ने
न जाने उन तीरों का निशाना कहाँ पे था।
मासूमियत के चलते हर एक राज़ खुल गया
हमको न हुआ इल्म छुपाना कहाँ पे था।
दुनियाँ में अपनी जी रहे थे हम कुछ इस तरह
हमको न थी ख़बर के ज़माना कहाँ पे था।
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हाल दिल का उन्हें बताते तो अच्छा होता
उनके दिल में जगह बनाते तो अच्छा होता
बस एक ख़याल ही से उनके सिमट जाते थे हम
सोये जज़्बातों को जगाते तो अच्छा होता
कभी एक पल के लिए वो नज़र मिलाते थे जब
हम भी नज़रों को न चुराते तो अच्छा होता
छत पे मिलने की गरज़ से जो चले आते थे वो
हम भी उस वक़्त चले आते तो अच्छा होता।
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बहारें आके चली जायेंगी तो क्या होगा
उनकी बस यादें ही रह जायेंगी तो कया होगा
अभी है वक़्त हसरतों को पूरा करने की
वर्ना जब हसरतें पछताएंगी तो क्या होगा
ख्वाहिशें दिल में उठी हैं न दबा तू उनको
दिल ही दिल में वो रह जायेंगी तो कया होगा
अपनी किस्मत को अपने हांथों से लिख लेना
लकीरें हाथों की मिट जायेंगी तो क्या होगा।
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वो जो आते थे चमन से महक चुराने को
शायद ही फिर करें आबाद इस वीराने को
बहार बनके जो चमन में घुमा करते थे
न जाने भूल गये क्यों वो इस ठिकाने को
शायद कशिश शराब की गुलों से बेहतर थी
जो रुख़ पलट गया उनका किसी मयख़ाने को
तरह-तरह की ख़ुशबूओं ने उनको घेर लिया
अब उन्हें वक़्त कहाँ इस चमन में आने को।
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अजीब रिश्तों से इन्सान गुज़र जाता है
जो कभी अपना था वो दिल से उतर जाता है
कभी तो रिश्ते माला नें पिरोये जाते हैं
और कभी टूट के हर मोती बिखर जाता है
कभी होती है कद्र रिश्तों में जज़्बातों की
और कभी दिल इन्हीं जज़्बातों से भर जाता है
कभी तो रिश्ता-ए-दरख़्त काटता है इन्सान
और कभी इन्हीं के साये में ठहर जाता है।
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न आये वो पल्रट के इस दिल से जो गये
बेगाना उनको होना था बेगाने हो गये
होते रहे वो ओझल नज़रों से बार बार
और एक दिन सब नज़ारे अनजाने हो गये
हर बार बात-बात पर होती रही तक़रार
और फिर उन्हीं सब लम्हों के अफसाने हो गये
उनकी हर एक बात पे खिल जाता था ये दिल
हम बेवजह उन बातों पर दीवाने हो गये
ये वक़्त गुज़रता रहा चलते रहे वो साथ
फिर भी उनसे मिले हुए ज़माने हो गये।
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ए वादी-ए-कश्मीर तेरे गुल्रों को क्या हुआ
गाने वाली उन मस्त बुल-बुलों को क्या हुआ
बागों को तेरे देखने सैलाब उठता था
कश्ती रुकी हुई है साहिलों को क्या हुआ
गीतों से परिन्दों के गुलिस्ताँ में थी बहार
जमती थीं रोज़ उनकी महफिलों को क्या हुआ
जन्नत को जहन्नुम में बदल डालने वाले
ख़ुदा के नेक बन्दों के दिलों को क्या हुआ।
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हमने देखा है उन्हें दर्द-ए-बिस्तर पर सोते
अपने बहते हुए अश्कों में अपना ग़म डुबोते
हैं ये वो लोग जिन्हें छोड़ दिया अपनों ने
हमने देखा है उन्हें अपना सभी कुछ खोते
हैं ये वो लोग जिन्हें देखा गया नफ़रत से
हमने देखा है उन्हें घर से दर-ब-दर होते
हैं ये वो लोग जिन्हें प्यार की ज़रुरत है
कीजिये प्यार तो हो जायेगा होते-होते।
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जिनके आने से ज़िन्दगी में बाहर आती थी
हर उस आहट में आज हम वो कदम दूँढते हैं
कैसे नादान थे वो समझ न पाये हमको
हम भी नादान हैं जो उनमें रहम ढूँढते हैं
उनके हर वादे पे एतबार किया था हमने
उनसे खाकर फ़रेब फिर वो क़सम दूँढते हैं
जो हमें गैरों के रहम-ओ-करम पे छोड़ गये
आज उन्ही गैरों में हम फिर वो सनम ढूँढते हैं।
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आज जो हुस्न-ओ-जवानी है कल नहीं होगी
इश्क़ की जो भी निशानी है कल नहीं होगी
आज मदहोश हो कल होश में जब आओगे
शक्ल पे जो ये नादानी है कल नहीं होगी
तेज़ है आँय और भड़की हुई लपटें भी हैं
आग जो आज बुझानी है कल नहीं होगी
खींचती है जो अदायें तेरी दुनियाँ भर को
उनकी जो आज कहानी है कल नहीं होगी
आपके हुस्न पे और आपकी अदाओं पे
आज जो दुनियाँ दीवानी है कल नहीं होगी।
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गर आपकी नज़रें हम से मिल्रीं हम ख़ुद के नहीं रह जायेंगे
जब इश्क़ हमें हो जायेगा हम उसमें कहीं बह जायेंगे
हर रोज़ मुख़ातिब होते हैं ख़्वाबों में आपके चेहरे से
ये ख़ाब अगर सच हो जायें दुनियाँ में आग लगायेंगे
हर एक अदा को आपकी हम छुप-छुप कर देखा करते हैं
और सोचते हैं हम भी एक दिन इनके आगे इतगरायेंगे
ख़ुद आप हमें गुस्ताख़ी पर मजबूर किया करते हैं मगर
इल्ज़ाम हमारे सर होगा तोहमत ख़ुद आप लगायेंगे
एक छोटी सी उम्मीद है की हमसफ़र बनेंगे हम दोनों
और इस उम्मीद के साये में लम्हों से गुज़रते जायेंगे।
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बस निशॉ उनकी क़लम के चन्द परचों पर मिले
तब ये जाना ज़िन्दगी से उनको थे कितने गि ले
वो कभी इन्सानी रिश्तों को समझ पाये नहीं
पड़ गईं उनमें दरारें बढ़ गये यूँ फ़ासले
कोशिशों में रह गयी शायद कहीं कोई कमी
और चलते ही रहे इस ज़िन्दगी के सिल्रसि ले
दर्द-ओ-गम को कागज़ों पर इस तरह ढाला गया
ज़िन्दगी की शाम ज्यों आहिस्ता-आहिस्ता ढले।
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राहत की एक साँस मिली है गहरी धुँधली शाम के बाद
प्यार की फिर उम्मीद जगी दिल में दिल-ए-नाकाम के बाद
उनको सज़ा हम दे भी दें की फिर न लगा पायें वो दिल
चोट तो ख़ुद को लगनी है आख़िर इस इन्तक़ाम के बाद
चाहा तो बहुत रहना लेकिन वो हमसे दूर न रह पाये
हमने भी उनको माफ़ किया चाहत पे लगे इल्ज़ाम के बाद
कैसे फिर ज़ुल्फ़ छुएँ उनकी कैसे फिर दामन थामें हम
दिल में है दर्द और डर भी है उस रिश्ते के अंजाम के बाद।
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आपसे नज़रें मिलीं और हम दीवाने हो गये
एक ही पल्र में हज़ारों पत्र सुहाने हो गये
पर्दादारी थी मगर चिल्मन ज़रा सी हिल गई
जब हुआ दीदार जीने के बहाने हो गये
जो कहा एक दूसरे से वो निगाहों ने कहा
लब सिले ही रह गये लाखों फ़साने हो गये
आपकी नज़रों में जाने किस गज़ब की थी कशिश
तीर जो उनसे चले तो दिल निशाने हो गये।
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आज हम सोचते हैं आख़िर उनको जाना क्यों
वो तो एक बुत है हमने बुत को ख़ुदा माना क्यों
उनकी बातों में कभी कोई असर था ही नहीं
फिर न जाने टूट के ये दिल हुआ दीवाना क्यों
हमें एहसास है वो दूर-दूर रहते हैं
फिर ये नज़दीक चले आने का बहाना क्यों
यूँ तो कहतें हैं की तौबा शराब से की है
मगर जब भी मिलत्रे तो हाथ में पैमाना क्यों
अगर दिल उनका साफ़ है वफ़ा भी सच्ची है
तो आज नज़रें मिल्रा के उन्हें चुराना क्यों
हमें था इल्म उनकी असलियत का पहले से
तो फिर दिखावे के लिए अला याराना क्यों।
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मुहब्बतों भरे वो ज़माने कहाँ गये
वो किस्से कहानी वो फ़साने कहाँ गये
वो हुस्न की तारीफ़ और वो इश्क़ की बातें
वो नग्में सुरीले वो तराने कहाँ गये
वो देखने को एक झलक छत पे आ जाना
उसके लिए वो साँ-साँ बहाने कहाँ गये
अब इश्क़ में नशा नहीं नशा हवस में है
मरते थे इश्क़ में वो दीवाने कहाँ गये
औरों का दर्द सीने में महसूस जो करें
वो लोग वो हमदर्द न जाने कहाँ गये।
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दीवार दुश्मनी की गिरायें तो किस तरह
इन्सान का ज़मीर जगायें तो किस तरह
ये दुश्मनी की आग है बुझती नहीं कभी
पानी मुहब्बतों का बहायें तो किस तरह
वो दुश्मन-ए-जाँ कब हुए जो दिल में बसे थे
ला दोस्ती की फिर से जलायें तो किस तरह
पाबन्दियाँ हैं दिल पे पहरा लगा हुआ है
दरबान-ए-दिल को नरम बनायें तो किस तरह
बरबादियों पे हँसतें और जश्न मनाते हैं
नफ़रत भरी आँखों को रुलायें तो किस तरह
इन्सान में न डर रहा न ख़ौफ़ ख़ुदा का
सरों को उसके आगे झुकायें तो किस तरह
धोखा है ये शतरंज की ये चाल
फ़रेब की बाज़ी है हरायें तो किस तरह।
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जो ग़ज़ल सुनाई उसने उसका हर अल्फ़ाज़ तो मेरा था
तर्ज़ रही होगी उसकी लेकिन हर साज़ तो मेरा था
गाया भी, सुनाया भी लेकिन न वो पहचान सका
जो दर्द छुपा था लब्ज़ों में उनका अंदाज़ तो मेरा था
उसने मेरी सब गज़लों को बस ग़ज़ल समझकर गाया था
लेकिन उन गज़लों ने खोला वो हर एक राज़ जो मेरा था
अब किसको अपना माने हम और अब हम भरोसा किस पे करें
उस पे जिसने की फ़रेब दिया बरसों हमराज़ जो मेरा था।
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ब्वग जाये निशाने पे अब वो तीर नहीं है
बहके क़दम जो रोके वो जंज़ीर नहीं है
न जाने ये इन्सान किधर देख रहा है
बाज़ी बिछी हुई है, वज़ीर नहीं है
है रंग-ओ-बू भी, ख़ुशबू भी, जायका भी है
अगर नहीं तो पहले सी तासीर नहीं है
कहता है कुछ और करता कुछ और ही है वो
इस आज के इन्सान का ज़मीर नहीं है
ख़ुद को कभी बदला न कुछ सोचा कभी नया
बस कहता है की साथ में तक़दीर नहीं है
था हुस्न और इश्क़ की बातों में कभी दम
अब तो किसी रांझे के पास हीर नहीं है।
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हम आज तक समझे नहीं नफ़रत है किसलिए
कुछ भी नहीं बाक़ी तो मुहब्बत है किसलिए
कब छोड़ के चल देंगे वो एहसास है हमें
फिर भी न जाने दिल में, दहशत है किसलिए
उनको दुआओं से कभी मतलब नहीं रहा
सजदे में बैठकर ये इबादत है किसलिए
अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ औ
र ही हैं वो
सब जानते हुए भी हैरत है किसलिए
“अदना सी शख़्सियत हूँ”, उनको कहते सुना है
फिर इस क़दर ये नाम ये शोहरत है किसलिए।
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रुख़ हवाओं के बदल दो तो कोई बात बने
उठते जज़्बात कुचल्र दो तो कोई बात बने
क्योंकि जज़्बात ऐसे मोड़ो पे ले आते हैं
जहाँ से बिन कहे चल दो तो कोई बात बने
जैसे हो ठीक हो न देखो ख़्वाब महलों के
ख़ुद को मामूली शकल दो तो कोई बात बने
वो जो बंजर हैं उन्हें ख़ून से सींचो अपने
रूखे खेतों को फ़सल दो तो कोई बात बने
वो जो नादान हैं और भूल्र किया करते हैं
उनको कुछ अपनी अकल दो तो कोई बात बने
ये जो सुर-ताल ज़िन्दगी के सारे बिगड़े हैं
इनको कोई अपनी ग़ज़ल दो तो कोई बात बने।
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नज़रें मिला के हमने आगाज़ किया है
यूँ आपको एक दोस्त एक हमराज़ किया हैं
हर एक बोल आपका ढाला हैं सुरों में
अपनी हर एक बात को तब साज़ किया हैं
वो आपका बचपना वो नासमझ अदायें
न पूछिये कैसे नज़र अंदाज़ किया हैं
इज़्ज़त हमारी आपकी नज़रों में कुछ न थी
हमने मगर हर पहलू का लेहाज़ किया हैं
हद पार करके आपने क्या कुछ नहीं कहा
क्या हमने कभी उस पे एतराज़ किया हैं
बाँटी हर एक बात हमने आप से अपनी
और आपकी हर बात को एक राज़ किया हैं।
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हालात दुश्मनी से जो दुश्वार न होते
तो यूँ कदम-कदम पे ये मज़ार न होते
अगर दिलों में मुहब्बत जगह बना लेती
तो आज हम इस पार, वो उस पार ने होते
अगर न पार करते हम हद-ए-दीवानगी
इस तरह से बेइज़्ज़त सर-ए-बाज़ार न होते
न तोड़ा होता हमने अपने भरोसे का भरोसा
तो हम यूँ आज बेवफाई के शिकार न होते
न उठाते वो कदम जो उठा लिए हमने
तो आज ज़िन्दगी से अपनी बेज़ार न होते
अगर इज़हार-ए-इश्क़ में हमेशा दर्द ही होता
तो इन्तेहाई शिद्दत से कभी इक़रार न होता।
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कुछ कहो तुम तो इस दित्र को करार आ जाये
मेरी वीरान ज़िन्दगी में बहार आ जाये
फिर चमकने लगे उदास सी सूनी आँखें
फिर उन आँखों में ग़ज़ब का ख़ुमार आ जाये
फिर सहारा मिले टूटे हुए भरोसे को
फिर से एक दुसरे पे एतबार आ जाये
फिर से चलने लगे राहत भरी ठंडी हवा
जिसकी ठन््डक में फिर चैन-ओ-क़रार आ जाये
और वो दित्र जो कहीं टूट कर बिखर से गये
फिर से उन दिलों को आपस में प्यार आ जाये
यूँ तो गुलशन में नये फूल खिले हैं लेकिन
पुराने फूल्रों पे रंग-ओ-बहार आ जाये।
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यूँ तो हमराज़ हमनवाँ वो कहलाते रहे
मेरे वजूद का मज़ाक वो उड़ाते रहे
हमने चाहा की ये आँखें हमारी नम न हो
हम थे कमज़ोर तो हम अश्क बहाते ही रहे
उनको तो फ़र्ज़ निभाने की भी फुर्सत न थी
वो ज़िम्मेदारियों से दामन चुराते रहे
‘हम भी कुछ हैं’ ये सोचने का हौसला न बचा
और इसी बात का वो फ़ायदा उठाते रहे
जो किसी को नज़र उठाके हमने देख लिया
हज़ारों पहरे इन आँखों पे वो बैठाते रहे
जो हमसे हो सका उसको अंजाम हमने दिया
हम हैं नाकाम ये एहसास वो दिलाते रहे।
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