Here we are going to present some Awesome Ghazal of great poets, these ghazals will definitely touch your heart and you will feel them and That will settle forever in the depths of your heart.



Ghazals

चलो बाँटें सनम, गुलजार मेरे।
सभी गुल आपके, सब ख़ार मेरे॥

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उमीदें, आरज़ू, कुछ ख़्वाहिशें बस,
खिलौने हैं यही दोचार मेरे।

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श्श ! कुछ मत बोलो, कुछ भी मत कहो अब,
तुम्हारे लब पे हैं रूखसार मेरे।

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खुशी आकर तो देखे पास आख़िर,
खड़े हैं ग़म सभी तैयार मेरे।

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गजल है आइना मेरी अना का,
मेरी पहचान हैं अशआर मेरे।

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वफा की जंग में अपने ही हाथों,
लुटा आया मैं सब हथियार मेरे।

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तुम्हाग मुन्तज़िर ही बैठेबैठे,
सभी ख़त पड़ गए बीमार मेरे।

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मुझे ये जिन्दगी जीने देगी,
मुझे मरने देंगे यार मेरे




बदलते तो हैं पर इतना नहीं बदलते हम।
सच, आपसे तो जियादा नहीं बदलते हम।।

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तुम्हेरे राज सरे बज्म खोल सकते हैं,
करो ये शुक्र कि किस्सा नहीं बदलते हम।

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तुम्हारा दिल है मुहल्ला तो क्या हुआ जानम,
किसी के डर से मुहल्ला नहीं बदलते हम।

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बुरा लगे तो लगे सच किसी को सुनना पर,
सजा के ख़ौफ से लहजा नहीं बदलते हम।

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हमें मिलो मिलो तुम, हमारी किस्मत है,
मगर ये सोच के सपना नहीं बदलते हम।

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गर्मों की धूप में भी साथसाथ चलते हैं,
यूँ वक्त देख के रिश्ता नहीं बदलते हम।

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ये बाल, चाल, सरापा सभी बदल डाले,
तुम्हारे प्यार में क्याक्या नहीं बदलते हम।

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तअल्लुकात बदलना ही गर बदलना है,
बदलने दो ये जमाना, नहीं बदलते हम।

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तुम्हारा नाम है छल्ले पे इसलिए जानम,
बदल ली चाबियाँ, छलला नहीं बदलते हम।

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गर्मों के बोझ से बेशक ये शाने झुक जाएँ,
खुशी का यार नज़रिया नहीं बदलते हम।

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सफ़ीना लेके सुनामी के बीच उतरे हैं,
कजा के डर से इरादा नहीं बदलते हम।





इक तो चेहरा नूरी उस पे कमाल तिरी ढु्ढी का तिल,
मौला के फन की क्या खूब मिसाल तिरी दठुट्ढी का तिल।

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इक तो तेरी भूरी आँखों का जादू माशाअल्लाह,
उसपे दिल पर डाले कितने जाल तिरी ठुड्डी का तिल

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जाने किस झरने के पानी से सींचा तूने इसको,
और जवां होता जाए हर साल तिरी ठुड्ढी का तिल

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नुक्कड़नुक्कड़ पर तेरी ठुट्ढी के तिल के चर्चे हैं,
घूँघट कर, चोरों से जरा सम्भाल तिरी ठुड्डी का तिला

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वाइज ने मस्जिद से ज्यादा सज्दे तुझको कर डाले,
अल्लाह की जन्नत से महंगा माल तिरी ठुड्डी का तिल।

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इसके चर्चे, इसकी बातें, इसके ही सब ख़्वाब मिले,
दिन तो दिन रातें भी करता मुहाल तिरी ठुड्ढी का तिल।

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तुझसे क्यूंकर गुस्सा इक पल को भी रह पाए 
मेरी कमजोरी मेरा जलाल तिरी ठुड्डी का तिल



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कभी खुद से ही मिलने को मचल जाता हूँ, जाने क्यों?
मैं अपनी खोज में घर से निकल जाता हूँ, जाने क्यों?

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तेरे रूखसार को होंठो से छूना चाहता तो हूँ,
मगर बढ़ने से पहले ही सँभल जाता हूँ, जाने क्यों?

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तुझे खुद मैंने सौंपा है परायी बाँहों में फिर भी,
तुझे उन बॉहों में देखूँ तो जल जाता हूँ, जाने क्यों?

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भले मन से मैं पर्वतसा अटल बेजोड़ हूँ, लेकिन,
तेरे छूने से दरियासा पिघल जाता हूँ, जाने क्यों?

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कभी लाखों कमा कर भी हरारत कम नहीं होती,
कभी मिट्टी की गुल्लक से बहल जाता हूँ, जाने क्यों?


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बिना तेरे मुझे कोई सफ़र अच्छा नहीं लगता।
अकेले चल तो लेता हूँ, मगर अच्छा नहीं लगता।।

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हाँ माना मुझसे ज्यादा खूबसूरत शख्स हैं याँ पर,
मगर तू देखती जाए उधर, अच्छा नहीं लगता।

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अगर बच्चे शजर के गुल हैं तो मॉबाप हैं शाख़ें,
बिना शाख्रों के कोई भी शजर अच्छा नहीं लगता।

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यहाँ पर उम्रमोहब्बत सिमट जाती है बिस्तर में,
किसी को उम्र भर का साथ इधर अच्छा नहीं लगता।

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शबफुर्कत में मिल जाए तुझे इक दूसरा मुझसा,
कि रुस्वा रातों में तन्हा कमर अच्छा नहीं लगता।




ईमां खुलूसो उन््स का ये भी कमाल है,
चहरे पे अब तलक वही हुस्नो जमाल है।

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उससे बिछड़ के जिंदा हूँ ये भी कमाल है,
ये और बात ज़िन्दगी जीना मुहाल है।

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मुझको हो वास्ता भला दुनिया से और क्या,
तुम हो तुम्हारी याद तुम्हारा खयाल है।

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मिलता नहीं जवाब है गुजरी तमाम उम्र,
मेरी हयात खुद में ही खुद इक सवाल है।

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आने से उनके चार सू आई बहारे गुल,
बेहाल थी जो मेरी वो तबियत बहाल है।

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आई थी तेरी सिम्त से छूकर गई हवा,
रूखसार पे तो अब भी वो रंगत गुलाल है।

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ठोकर मिलीं रहे हैं पे अपनी अना के साथ,
हमको अपनी जात पे कुछ भी मलाल है।

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बेनूर जिन्दगी को भी बख्शी है नेमतें,
तेरा हुनर भी या खुदा बस बाकमाल है।

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ये कौन है जो खींचता इंसानियत की खाल,
नामे जिहाद करता जो बवाल है।
  


खुलने लगे हैं सारे कयामत के रास्ते,
हम जबसे चल पड़े हैं मुहब्बत के रास्ते।

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जहनो में रंग मज़हबी नफरत का जो भरा,
पैदा हुए यहीं से अदावत के रास्ते

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रोका गुलों ने हमको ये रोरो के भी कहा,
काटे सदा मिलेंगे शराफत के रास्ते।

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ये बदमिजाजी, तल्ख जुबां और ये गुरुर,
आए हैं तेरे पास ये दौलत के रास्ते

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अनशन खुशी ने ठान लिया बिन तेरे सनम,
ये सांस भी चली है बगावत के रास्ते

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कदमों में अपनी मां के झुका शीश देख ले,
जाते हैं सब यहीं से ही जन्नत के रास्ते।

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भाई, मकान, दौलतो जागीर तू ही रख,
चाहूँ नही मैं कुछ भी अदालत के रास्ते

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दस्तक ही एक प्यार की काफी है बस 
दिल का ये दर खुले जहानत के रास्ते





दिलरुबा, दिलदार, दिल की शादमानी की वजह,
कल भी तू था आज भी तू जिन्दगानी की वजह।

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बॉँह फैलाये समंदर की सदा ही बन गई,
तोड़ बन्धन बहती नदिया की रवानी की वजह।

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बन गया मेरा मुकद्दर या कि फिर मेरा सनम,
आशियाने दिल मे गम की मेजबानी की वजह।

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ये गजल मेरी सरापा इश्क की है दास्तां,
इश्क मेरा आंसुओं की तर्जुमानी की वजह।

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जिस्म के बाजार की रौनक सिसक कर कह उठी,
ये सुलगता पेट है बिकती जवानी की वजह।

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खुश्क है गर दिल का दरिया जीस्त सहरा सी तो फिर,
क्या है आंखो में भरे नमकीन पानी की वजह।

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कैसे बतलाऊँ तुम्हें क्यों मान बैठे रब उन्हें,
क्यों इबादत बन गई मेरी कहानी की वजह।

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सभ्यता, संस्कार या फिर मगरिबी ये आँधियाँ,
क्या है बच्चों की ये बढ़ती बदजुबानी की वजह।

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उनको देखे से मचलती हसरतें ही बन गईं,
सर्द अहसासों में फिर आतिश फिशानी की वजह।

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ये बदलता दौर बदली आंख भंवरों की
है कली पर बागबां की निगहबानी की वजह।


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खुलूस उन्स का भरपूर ऐसे वार किया,
गुरूर संग को शीशों ने तार तार किया।

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तू बेवफाई की फितरत से बाज कब आई,
दुनिया तुझसे हमेशा तो मैंने प्यार किया।

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कोई किसी की मुहब्बत में चढ़ गया सूली,
किसी ने कच्चे घड़े से ही दरिया पार किया।

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वो कोई गैर भी करता नही गरीबी में,
रवैया अपनों ने मेरे जो इख्तियार किया।

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चल एक बार तुझे और कर दिया है मुआफ,
चल एक बार तेरा और एतबार किया।

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वो एक पल तो मुकद्दर में मेरे था ही नही,
जिस एक पल का सदा मैने इंतजार किया।

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मैं अपने आप से सौसी सवाल करने लगी,
किसी की याद ने जब ज्यादा बेकरार किया।

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उतर गई थी नदी आप ये नहीं समझें,
मेरा सफीना मेरे हौसलों ने पार किया।

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तेरे जमाल ने गज़लों को कर दिया रोशन,
तेरे ख़याल ने लफ़्जों को मुश्कबार किया।

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बहारों तुम तो चमन को रख सकीं शादाब,
हमारे छालों ने सहरा को लालाजार किया।

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हमारे मरने पे वो फूल लेके आए हैं,
तमाम उम्र जिनका इंतजार किया।



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किसी भी तौर ये हुजरा नहीं बदलते हम।
रईस देख के कासा नहीं बदलते हम।।

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तमाम लोग तो शकलें बदल के रखते हैं।
अजीब जिद है के साया नहीं बदलते हम॥।।

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अता करे वो जमाने की दौलतें लेकिन।
बयां का तौर तरीका नहीं बदलते हम।।

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उसूल, फर्ज, शराफत हो या रवादारी।
जुनूं हो सर पे तो क्या क्या नहीं बदलते हम।।

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छेटे तो खैर, छँटने पे भी शिकायत क्या 
गुबार देख के रस्ता नहीं बदलते हम।।

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ये और बात के कमतर ही रह गये अब तक।
मगर उमीद की दुनिया नहीं बदलते हम॥।

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पता नहीं है तअल्लुक कहाँ सुधर जाएँ।
तमाम उम्र लिहाजा नहीं बदलते हम।।

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मिले निगाह तो गरदन हमारी झुक जाए।
बदल भी जाएँ तो इतना नहीं बदलते हम॥।


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कुछ दूर रोशनी से अँधेरा जरूर है।
यानी जमीं पे शख्स उतरता जरूर है॥

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मैंने गड़ा रखी हैं निगाहें यकीन से।
पर्दा किसी भी रुख़ से सरकता जरूर है।।

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बाँधा गया हो जिसको भी मतलब की डोर से।
रिश्तों का सिलसिला वो बिखरता जरूर है।।

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जिसने दुआएँ दी हों मुकाबिल हरीफ़ को।
इंसां वो गर्दिशों से निकलता जरूर है।।

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रब की इनायतों से तो कमतर हैं गर्दिशें।
कुहसार भी गमों का पिघलता जरूर है॥

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मन में समा गया है जाने ये कैसा खौफ।
जब भी चलूँ तो पाँव फिसलता जरूरी है॥

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जिस पर भी उठ गयी वो किसी का फिर हुआ।
तेरीनज़रमें कुछ तो करिश्मा जरूरी है।।




लोग मेरी कमी समझते हैं।
यानी वो बेबसी समझते हैं।।

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क्या गजब मौत की सहेली को।
हम सभी जिन्दगी समझते हैं।।

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लाख पर्दे में गम छुपा ले तू।
हम भी झूठी खुशी समझते हैं।।

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उनकी आँखों में मैं खटकता हूँ।
झूठ को जो सही समझते हैं।।

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मुझको कैसे नहीं समझ पाये।
आप तो शाइरी समझते हैं।।

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किसकी शामत हुई थी सूखे से।
किसकी चाँदी हुई समझते हैं।।

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इन दलीलों से कुछ नहीं होगा।
हम भी नेकी बदी समझते हैं।।

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किसकी उंगली का वो इशारा था।
किस पे बिजली गिरी समझते हैं।।

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एक मुद्दत से किसकी मुट्ठी में।
कैद है रोशनी समझते हैं।।


हम तो अपनी ख़ता से डरते हैं।
कब तुम्हारी सजा से डरते हैं।।

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लील जाती है यह तमहुन को। 
मगरिबी इस हवा से डरते हैं।। 

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लूट लेते हैं ला के मंजिल पर।
आज के रहनुमा से डरते हैं।।

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सच से हट कर ये कुछ नहीं कहती।
रूह की ही सदा से डरते हैं।। 

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तेज आँधी की हमसफर बन कर।
छोड़ जाती रिदा से डरते हैं।।

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दर्द देती हैं चाँदनी रातें।
अब तो बादेसबा से डरते हैं।।

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जो फटी हैं वो क्या डराएँगी।
हम तो उतरी कबा से डरते हैं।।

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जब्र सहते हैं ख़ामुशी से हम।
जख्म की ही सदा से डरते हैं।।




हाल यूँ भी किसी पर खुला ही नहीं।
जिन्दगी का मेरी जाविया ही नहीं।।

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फिक्र मुझको है जल्दी से मिलती निजात।
सर वो मेरा मगर काटता ही नहीं।।

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ख़ामुशी ओढ़ कर जुल्म सहते हैं सब।
यूँ बजाहिर तो दादजफा ही नहीं।।

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हाथ मेरा है अपने गिरेबान पर।
ये करिश्मा कोई देखता ही नहीं॥।

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देखना आँख भर कर मुझे बारहा।
इक तकल्लुफ था तेरा, पता ही नहीं।।

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साँस लेने की ताकत भी जाती रही।
हक में मेरे तो दस्त दुआ ही नहीं।।

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कौन करता इबादत खुदा की 
जब जमाने में गारेहिरा ही नहीं।। 




अभी कुछ देर पहले कौन था, जो रो रहा था,
जर्मी पर बूँद जैसी रोशनी को बो रहा था॥

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कि शायद मुद्दों के बाद भी ढूँढ पाऊं,
नजर से एक चेहरा इस तरह गुम रहा हो रहा था॥।

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बँधी थी तोहमतों की पाँव में जन्जीर जिसके,
ख़ामोशी ओढ़ के मजबूरियों में सो रहा था॥

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मैं खुद से बज रहा था, हँस रहा था, सज रहा था,
कि जैसे तेरी पायल का मैं छुँघरू हो रहा था॥

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जाने मैल कितना उस शिकस्ता जिस्म पर था,
नदी पर कब से बैठा अपना साया धो रहा था॥

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नज़र की जुर्रअतों को फिर कोई उकसा रहा था,
कभी जो देखा था एक ख़्वाब बूढ़ा हो रहा था॥

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मैं अपनी जात की कुछ इस तरह तक्मील में था,
मैं तुझ को पा रहा था और खुद को खो रहा था।।

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समझ आई मुझे ये बात मंजिल पर पहुँच कर,
मैं अपने जिस्म की मिट्टी कहीं और खो रहा था॥



सच को अपनाओ तो सूरत भी निखर जायेगी,
नाज होगा जो कभी कल पे नज़र जायेगी।।

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जिन्दगी किस की रही अर्स आलम में सदा,
तेरी हस्ती भी जमाने से गुजर जायेगी।।

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वक़्त है पास तो कुछ काम भी कर ले वर्ना,
जिन्दगी रेत की मानिन्द बिखर जायेगी।।

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आप हठहरेंगे तो फिर देखना जाने बहार,
गर्दिशे वक्त भी दो पल को ठहर जायेगी।।

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तेरे अपने ही करेंगे तेरे गिरने की दुआ,
कामयाबी की उन्हें ज्यूँ ही ख़बर जायेगी।।

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कौन दुनिया में सदा के लिए आया है 
जिन्दगी झूम के दो दिन में गुजर जायेगी।।









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